Thursday, February 14, 2008

भावार्थ की त्रिवेणी...पार्ट-४

कोई भूखा है दूर से ही पहचानना आसान नहीं है शायद। ।
गरीबी भी पसीने में चिपक के चलती सी है लेकिन ।


यह मोहल्ले के कुत्ते हमेशा कूडा उठाने वाले पर ही क्यों भौकते हैं
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बहुत दूर से आए हैं लोग यहाँ उस मरहूम कवि को सुनने।

भीड़ के भीड़ चली आ रही है, शामियाने की तरफ़

अकेलेपन में लिखी नज्में आज भीड़ से रूबरू होंगी !!!
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शायद सारे फूल भी यहाँ खिलते होंगे रोज लेकिन।

पोरबंदर में घुसते ही मुझे मरी मछली की बदबू ही आई।

मौत का साँसों से रिश्ता काफ़ी पुराना सा लगता है।!!!
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भावार्थ...

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