Friday, February 29, 2008

कुछ ख़ास बनने की चाहत थी बस आम बन गया हूँ !!!

कुछ ख़ास बनने की चाहत थी बस आम बन गया हूँ।
आब-ओ-ताब की चाहत में एक घुबार सा बन गया हूँ।

ये ख्वाइश तो दिल-ऐ-नादा की बस एक जिद सी है।
आसमा के अरमान में उमीदों का कफस बन गया हूँ।

न जाने कैसे याद रखेगी दुनिया मुझे इंतकाल के बाद।
कहानी की चाहत थी एक मुख्तसर मिसरा बन गया हूँ।

बुलंदी की खलिश के जला गई मुझे मेरी रूह तक मौला।
बा-कमाल बनने की चाहत थी एक बे-चेहरा बन गया हूँ।

मेरे उसूल थे जो मेरे वजूद की मशाल बन के जिए।
इंक़लाब की चाहत थी मुझे बस एक मजार बन गया हूँ।

भावार्थ ...

URDU-HINDI

आब-ओ-ताब: शान शौकत , घुबार: धूल, कफस : कैद, मुख्तसर: छोटा सा, मिसरा: वाक्य, खलिश: जलन, बा-कमाल: महान, बे-चेहरा: अनजान, इंकलाब: क्रांति, मजार: कब्र

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