Tuesday, February 26, 2008

मेरा अस्तित्व जीतने चला है आसमा नए !!!

उम्मीद की भोर ने आखें खोली है।

दुआओं की आरती के दिए जल गए।


शगुन के नारियल ने आशीर्वाद दिया।

विजय तिलक ललाट पे गढ़ गए।


जनेऊ के ओज ने शुद्धि की रस्म की।

पुरुषार्थ कलावे की शक्ति से बाँध गए।


गंगाजल महल में घुल गया बह कर।

धुप बत्ती के धुएँ से बुरे अरमान जल गए।


खड़ा हूँ शक्ति का आधार लिए में यहाँ।

मेरा अस्तित्व जीतने चला है आसमा नए।


भावार्थ...

1 comment:

Anonymous said...

the craziest stupidest poem ever!!!but atleast it saved me from making my own poem on identity