Wednesday, January 30, 2008

आज रंगो को छूने का जी चाहता है।

आज रंगो को छूने को जी चाहता है।
फिर जिंदगी जीने को जी चाहता है।
जो होश में रह कर तो मिल नहीं पाए।
वही सपने सजाने को जी चाहता है।

आज रंगो को छूने का जी चाहता है।

आज बारिश बिछाने को जी चाहता है।
फिर जिंदगी जीने को जी चाहता है।
रेत की लपटें जला दे ना ख़ुशी को।
वह रिम झिम लाने को जी चाहता है।

आज रंगो को छूने का जी चाहता है।

आज हवा को पकड़ने को जी चाहता है।
फिर जिंदगी जीने को जी चाहता है।
छूट गए है जो हमसफ़र सारे
वो सफर शुरू करने को जी चाहता है।

आज रंगो को छूने का जी चाहता है।

आज दरिया समेटने को जी चाहता है।
फिर ज़िंदगी जीने को जी चाहता है।
तिनके तिनके से बनी यह जो जिंदगी।
वही तिनके बटोरने को जी चाहता है।

आज रंगो को छूने का जी चाहता है।
फिर ज़िंदगी जीने को जी चाहता है।

2 comments:

Mohit Garg said...

आज रंगो को छूने को जी चाहता है।
फिर जिंदगी जीने को जी चाहता है।

padne ke baad bas yahi bolne ko jee chatha hai.....

sarita said...

dil ko choo gayi... baar baar padne ka maan karta hai... keep going...