Monday, January 28, 2008

ना जाने क्यों इस मोड़ पर आकर में कुछ भी पाना नहीं चाहता।

ना जाने क्यों इस मोड़ पर आकर में कुछ भी पाना नहीं चाहता।
रिश्ते जो बन गए है यूहीं क्यों उनको मैं अब निभाना नहीं चाहता।

अभी तो ख़ुशी के बस चार कदम ही चला है मेरा जीवन।
पता नहीं क्यों उस रास्ते पे मैं फिर वापस जाना नहीं चाहता।

ना जाने क्यों इस मोड़ पर आकर में कुछ भी पाना नहीं चाहता।
रिश्ते जो बन गए है यूहीं क्यों उनको मैं अब निभाना नहीं चाहता।


छुने को ऊँचे बादल पड़े हैं अभी , पाने को लाखों तारे।
पर मैं सोच के मोहपाश पे पड़ा क्यों अब उपर उठाना नहीं चाहता।

ना जाने क्यों इस मोड़ पर आकर में कुछ भी पाना नहीं चाहता।
रिश्ते जो बन गए है यूहीं क्यों उनको मैं अब निभाना नहीं चाहता।

अज्ञानता के बादल ही मुझे ले डूबेंगे लगता है।
ज्ञान के सागर मैं फिर भी मैं डुबकी क्यों लगना नहीं चाहता।

ना जाने क्यों इस मोड़ पर आकर में कुछ भी पाना नहीं चाहता।
रिश्ते जो बन गए है यूहीं क्यों उनको मैं अब निभाना नहीं चाहता।

1 comment:

Mohit Garg said...

bhai jaan, yeh tum thik nahi kar rahe ho...
kisike pait par laat marna achchi baat nahi hai..
bechahre guljar, javed akhtar and...........