Tuesday, January 29, 2008

तनहा सारे वही मैंने रिश्तों में संग देखे...!!!

युही मैंने जीवन के सारे रंग देखे।
कुछ अकेले कुछ सबके संग देखे।

सपने
हैं चमकीले से जैसे,जुगनुओं को हो काफिला।
कभी लाल हैं, कभी हरे, इनका ऐसा है सिलसिला
मुट्ठी में आकर भी निकल जाते हैं यह रेत के तरह .
बहरूपिया सपनो के मैंने ये ढंग देखे।

युही मैंने जीवन के सारे रंग देखे।
कुछ अकेले कुछ सबके संग देखे।

रिश्ते हैं डोर रेशमी , चमक दूर से आती है।
दो कौने हैं हर रिश्ते के, ढील दी नहीं जाती है।
ख़ुशी कि ख्वाइश में कभी दिल भी टूट जाते हैं।
तनहा सारे वही मैंने रिश्तों में संग देखे।

युही मैंने जीवन के सारे रंग देखे।
कुछ अकेले कुछ सबके संग देखे।

यादें है रिमझिम कि तरह , सावन का माह हो जैसे।
बीते कल में लौटना की , यह अकेली राह हो जैसे।
पल में आंसू भर देती हैं ये आखों कि डिबियों में
यादों के भी नमी भरे मैने रंग देखे।

युही मैंने जीवन के सारे रंग देखे।
कुछ अकेले कुछ सबके संग देखे।

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